भले ही कारगिल के युद्ध को हुए 26 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इस युद्ध में देश के लिए बलिदान दे चुका फाजिल्का के गांव साबूआना का बलविंद्र सिंह दो दशक बाद भी मां के लिए जिंदा है। मां ने अपने तीन और बेटों के साथ-साथ चौथे बलिदानी बेटे को भी जायदाद में हिस्सा देते हुए उसके लिए विशेष कमरा तैयार करवाया है। जहां 24 घंटे लाइट व पंखा चलता है। पानी के अलावा अन्य व्यवस्था रहती है। आखिरी बार शहीद द्वारा पहनी गई वर्दी भी इसी कमरे में मौजूद रहती है। मां के अनुसार कई बार उसे बेटे के आने की आहट सुनाई दी, उसका बेटा कमरे में आकर आराम करता है और फिर से डयूटी पर चला जाता है। 19 साल के बलविंद्र ने दिया बलिदान 1999 में भारतीय सरजमीं पर कब्जे का सपना देख कारगिल में घुसपैठ करने वाली पाक फौज को भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया था, लेकिन उस जंग में भारत ने भी अपने कई सपूतों को खोया था। उनमें से एक था फाजिल्का के गांव साबूआना का बलविंद्र सिंह, जिसने दुश्मनों से लड़ते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर दिए। तब बलविंद्र सिंह महज 19 वर्ष का था। 17 वर्ष में फौज में जाने की ठानी परिवार गांव साबूआना से फाजिल्का के साथ कांशी राम कालोनी के निकट आकर बस गया, जिसे बाद में उस जगह को शहीद बलविंद्र सिंह यादगारी का नाम दिया गया। मां बचन कौर ने बताया कि बलविंद्र सिंह जब 17 वर्ष का था, तो उसने फौज में जाने की ठानी, हालांकि उनके रिश्तेदारों में कई लोगों के फौज में होने के चलते उसे कोई डर नहीं था, उसने फौज में भर्ती हासिल की। अभी भर्ती हुए कुछ ही समय हुआ था कि कारगिल को लेकर दोनों देशों में विवाद पैदा हो गया। असला खत्म होने के बाद हुआ कुर्बान नम आंखों से मां बचन कौर ने बताया कि उसके बेटे ने दूर से दो दुश्मनों को देखा और उन पर धावा बोल दिया, करीब पांच घंटे तक वह उनसे लड़ा, लेकिन उसके पास मौजूद असला खत्म हो जाने के चलते वह देश के लिए कुर्बान हो गया। मां ने बताया कि उसे कई बार बलविंद्र सिंह के घर आने का एहसास हुआ। बलविंद्र सिंह के लिए एक कमरा तैयार करवाया। बलिदानी बलविंद्र सिंह के कमरे में उसकी फोटो और मिले सम्मान अवॉर्ड के अलावा गुरुओं की तस्वीरें लगी हैं, जहां घर में मौजूद बलविंद्र के भाई बूटा सिंह और उसकी पत्नी जसविंद्र कौर रोजाना धूप बत्ती व अन्य सेवा करते ही हैं। भाई बोला-बलिदानी हमेशा अमर रहते हैं
भाई बूटा सिंह का कहना है कि उसका भाई मरा नहीं है बल्कि देश के लिए बलिदान हुआ है और बलिदानी हमेशा अमर रहते हैं। उन्होंने बताया कि भले ही उसके नौजवान भाई ने देश के लिए बलिदान दिया, लेकिन उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं हटाए, बल्कि परिवार उसके नक्शे कदमों पर चल रहा है।
कारगिल में 19 की उम्र में शहीद फाजिल्का का बेटा:जायदाद में हिस्सा, घर में बना विशेष कमरा, मां बोली-कई बार आहट सुनाई देती है
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