राज्यपाल ने किया चंबा के ऐतिहासिक मिंजर मेले का उद्घाटन, जानिए कब और कैसे हुई मेले की शुरुआत?

by Carbonmedia
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भगवान लक्ष्मीनारायण और रघुवीर महाराज को मिंजर अर्पित करने के साथ ही आज चम्बा में अंतरास्ट्रीय मिंजर मेला शुरू हो गया. एक सप्ताह तक चलने वाले इस मिंजर मेले की शोभा बढ़ाने और मुख्यातिथि के तौर पर हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने शिरकत की. 
इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के इलावा चम्बा सदर के विधायक नीरज नय्यर भी इस मेले में शामिल हुए. हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी ऐतिहासिक मिंजर मेले की शोभा यात्रा नगरपालिका से होते हुए सबसे पहले प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर से रघुबीर मंदिर और उसके बाद श्री हरिराय मंदिर में पहुंचा, जहां पर महामहिम राज्यपाल और उनके साथ आए लोगों ने मिंजर को भगवान के चरणों मे अर्पित कर मिंजर की रस्म को अदा किया.
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने किया उद्घाटन
इसी के साथ ही राज्यपाल द्वारा मिंजर के ऐतिहासिक चिन्ह मिंजर ध्वज को फहराकर इसका शुभारंभ किया. वहीं राज्यपाल ने अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले के उपलक्ष्य पर ऐतिहासिक चौगान मैदान में लगाई गई विभिन्न प्रदर्शनों का रिबन काटकर उद्घाटन किया. 
महामहिम राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल प्रदेशवासियों को अंतर्राष्ट्रीय मिंजर महोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि चंबा जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
उन्होंने कहा कि मेलों के माध्यम से संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करके आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा दिया जाता है. उन्होंने कहा कि मिंजर महोत्सव का प्राचीन परंपराओं, मान्यताओं और आस्थाओं से गहरा संबंध है. इस अवसर पर  शुक्ल ने राज्य में भारी बारिश और बाढ़ से हुई जान-माल की क्षति पर चिंता व्यक्त की
क्या हैं मिंजर मेला, कब और कैसे हुई शुरुआत?
मिंजर मेला हिमाचल प्रदेश की चंबा घाटी में 935 सदी से मनाया जाता है. कहा जाता है कि चंबा के राजा ने त्रिगर्त (जिसे अब कांगड़ा के नाम से जाना जाता है) के शासक पर विजय प्राप्त की थी उसकी खुशी में इस मेले को मनाया जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि अपने राजा की जीत और वापसी पर लोगों ने उन्हें धान और मक्के के गुलदस्ते भेंट किए, जो समृद्धि और खुशी का प्रतीक थे. उन्हीं गुलदस्तों को स्थानीय भाषा में मिंजर कहा जाता है. 
यह मेला श्रावण मास के दूसरे रविवार को आयोजित होता है. मेले की शुरुआत मिंजर बांटकर की जाती है, जो एक रेशमी लटकन होती है जिसे पुरुष और महिलाएं समान रूप से अपने वस्त्रों के कुछ हिस्सों पर पहनते हैं. यह लटकन धान और मक्के की कलियों का प्रतीक है, जो वर्ष के इस समय में दिखाई देती हैं. सप्ताह भर चलने वाला यह मेला ऐतिहासिक चौगान में मिंजर ध्वज फहराने के साथ शुरू हो गया है.
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