राजस्थान: कड़ा और कृपाण पहनने पर सिख लड़की को एग्जाम सेंटर में एंट्री नहीं! भड़के सुखबीर बादल ने उठाया बड़ा कदम

by Carbonmedia
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शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने रविवार को राजस्थान की सरकार और प्रशासन पर बड़े आरोप लगाए. उन्होंने दावा किया कि पंजाब के तरनतारन की एक लड़की राजस्थान न्यायिक सेवा का एग्जाम देने गई थी, लेकिन उसे एग्जाम सेंटर में एंट्री नहीं दिया गया क्योंकि लड़की ने सिख समुदाय का पवित्र कड़ा और कृपाण धारण किया हुआ था. 
सुखबीर बादल ने यह आरोप लगाते हुए कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों का हनन है और धर्म मानने के अधिकार का अपमान करता है. सुखबीर बादल ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 25 में सिख धर्म के अन्य प्रतीकों के साथ-साथ कृपाण का भी विशेष उल्लेख किया गया है, जिन पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं है, यहां तक कि एयरपोर्ट की चेकिंग में भी इनपर रोक नहीं लगाई गई.
पीएम मोदी से हस्तक्षेप की मांगशिअद अधयक्ष ने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सिख समुदाय के प्रतीकों के खिलाफ अपमान के मामले बढ़ रहे हैं. ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है.
सुखबीर बादल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा है, जिसके जरिए उन्होंने ऐसे मामलों पर उनका ध्यान खींचने की कोशिश की है. शिअद अध्यक्ष ने दावा किया है कि तरनतारन की गुरप्रीत कौर को जयपुर के एग्जाम सेंटर में जाने से रोक दिया गया. पत्र में उन्होंने लिखा कि यह बेहद चौंकाने वाला है कि अगर कोई नियम हैं भी, तो वे भारत के पवित्र संविधान की अवहेलना करते हुए निचले स्तर के अधिकारियों द्वारा बनाए जा रहे हैं.
पीएम मोदी से सुखबीर बादल की अपीलन्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुखबीर बादल ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा कि भारत सरकार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अविभाज्य आस्था के विषयों को छूट देने के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए या ज़रूरत पड़ने पर फिर से जारी करने चाहिए.
जयपुर से पहले जोधपुर में भी हुआ था ऐसा मामलाशिअद चीफ ने दावा किया कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब सिख समुदाय के प्रतीकों का अपमान किया जा रहा हो. पहले भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं. पिछले साल ही, दो सिख लड़कियों को जोधपुर में यही एग्जाम देने से रोका गया था. 
उन्होंने आरोप लगाया कि सिख और उनकी पहचान अविभाज्य हैं और इसे विधिवत स्वीकार किया गया है. देश में सभी उद्देश्यों के लिए इसका अनुपालन संवैधानिक रूप से अनिवार्य है, लेकिन निचले स्तर पर बैठे कुछ अधिकारी खुद को संविधान से ऊपर समझते हैं. इसे रोका जाना चाहिए. 

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