शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार आज, कब और कहां होगा? कौन-कौन होगा शामिल? जानें पूरी जानकारी

by Carbonmedia
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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के संस्थापक शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार आज मंगलवार (5 अगस्त) को उनके पैतृक गांव में राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. 81 वर्षीय ‘दिशोम गुरु’ का 4 अगस्त को सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया था. वे लंबे समय से किडनी की बीमारी और हाल ही में आए स्ट्रोक से पीड़ित थे.
उनके पार्थिव शरीर को सोमवार (4 अगस्त) शाम दिल्ली से रांची लाया गया, जहां देर रात तक आमजन और नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की. आज सुबह 9 बजे उनका पार्थिव शरीर रांची स्थित विधानसभा परिसर में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. वहीं दोपहर 3 बजे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
कौन-कौन होगा अंतिम संस्कार में शामिल?
अंतिम दर्शन में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, विधायक कल्पना सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, चंपई सोरेन, बाबूलाल मरांडी और अन्य प्रमुख नेताओं ने श्रद्धांजलि दी है.  ये नेता संभवतः अंतिम संस्कार में भी शामिल हो सकते हैं. पूर्णिया से लोकसभा सांसद पप्पू यादव भी रांची पहुंचे गए हैं. 
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी भी अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए रांची पहुंच रहे हैं. वहीं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी रांची के लिए रवाना हो चुके हैं. इसके अलावा टीएमसी से सांसद शताब्दी रॉय और डेरेक ओ ब्रायन रांची पहुंचे हैं. 
कहां होगा शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार?
शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में किया जाएगा जिसके लिए प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की हैं. उपायुक्त और SP सहित प्रशासनिक अधिकारियों की तैनाती की गई है. अंतिम संस्कार स्थल पर ट्रैफिक और सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की गई है, क्योंकि कई राज्यों से राजनीतिक हस्तियों के पहुंचने की संभावना है. 
तीन दिन का राजकीय शोक
झारखंड में शोक की लहर है. राज्य सरकार ने 6 अगस्त तक तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है. राज्य के अधिकांश स्कूल आज बंद हैं और कई जगहों पर विशेष प्रार्थनाएं आयोजित की गईं.
शिबू सोरेन को झारखंड की राजनीति का पर्याय माना जाता रहा है. उन्हें ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता था और उन्होंने आदिवासी अधिकारों और जनजातीय सम्मान के लिए लंबा संघर्ष किया. 38 वर्षों से वे JMM के नेता रहे और उनकी पहचान गरीबों और आदिवासियों की आवाज के रूप में रही. 

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