Repeated Ultrasound During Pregnancy: प्रेगनेंसी वो दौर होता है जब मां बनने वाली महिला हर छोटी-बड़ी बात को लेकर सतर्क रहती है. बच्चे की पहली धड़कन सुनने से लेकर उसकी पहली हलचल तक, हर पल मां के लिए खास होता है. इस सफर में अल्ट्रासाउंड एक ऐसा माध्यम बन जाता है, जिससे मां अपने नन्हे मेहमान की झलक देख पाती है. लेकिन जैसे-जैसे तकनीक का उपयोग बढ़ा है, वैसे-वैसे एक सवाल भी लोगों के मन में बार-बार उठने लगा है कि क्या बार-बार अल्ट्रासाउंड कराना बच्चे के लिए सुरक्षित है?
अल्ट्रासाउंड क्या है और इसका उपयोग क्यों होता है?
अल्ट्रासाउंड एक नॉन-इनवेसिव तकनीक है जिसमें हाई-फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स (ध्वनि तरंगों) की मदद से गर्भ में पल रहे शिशु की तस्वीर देखने को मिलती है. यह टेस्ट डॉक्टर को शिशु की ग्रोथ, एमनियोटिक फ्लूइड और बच्चे की पोजिशन जानने में मदद करता है. प्रेग्नेंसी में आमतौर पर 2 से 3 अल्ट्रासाउंड करना सामान्य और सुरक्षित माना जाता है. लेकिन एक महीने में सिर्फ एक बार कराना चाहिए.
डॉ. सलोनी श्रीवास्तव के अनुसार,अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित प्रक्रिया है, लेकिन यह सिर्फ तब कराना चाहिए जब इसकी आवश्यकता हो. मेडिकल जरूरत न हो तो सिर्फ शिशु को देखने के लिए बार-बार अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी नहीं है.
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कब-कब कराया जाता है अल्ट्रासाउंड?
प्रेगनेंसी में मुख्य रूप से तीन बार अल्ट्रासाउंड किया जाता है
पहली तिमाही (6-9 सप्ताह): हार्टबीट जानने के लिए
दूसरी तिमाही (18-22 सप्ताह): बच्चे के अंगों की जांच के लिए
तीसरी तिमाही (32-36 सप्ताह): बच्चे की स्थिति और वजन का मूल्यांकन करने के लिए
क्या करें और क्या न करें?
केवल डॉक्टर की सलाह पर ही अल्ट्रासाउंड कराएं
‘4D’ या ‘5D’ स्कैन केवल मनोरंजन या उत्सुकता के लिए बार-बार न कराएं
अल्ट्रासाउंड तकनीक का सम्मान करें, लेकिन अति-उपयोग से बचें
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड एक अनमोल तकनीक है जो मां को उसके शिशु से जुड़ाव का अनुभव कराती है. यह सुरक्षित है, लेकिन इसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब मेडिकल जरूरत हो. डॉ. सलोनी श्रीवास्तव यही सलाह देती हैं कि, मां बनने की इस यात्रा में भावनाओं के साथ-साथ विवेक और विज्ञान का संतुलन भी जरूरी है.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.