Akkare Kottiyoor Siva Temple: दक्षिण भारत में शिव जी को विशेष रूप से पूजा जाता है. यहां अनेकों शिव मंदिर है जिसमें से एक है केरल में स्थित कोटि्टयूर का शिव मंदिर. यहां का अक्कारे कोटि्टयूर प्राचीन शिव मंदिर हिंदू पौराणिक कथाओं में एक विशेष स्थान रखता है और अपनी अनोखी धार्मिक रस्मों और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां का वार्षिक महोत्सव, जिसे वैशाखमहोत्सवम् के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं अक्कारे कोटि्टयूर शिव मंदिर का इतिहास, महत्व,
कोटि्टयूर मंदिर का इतिहास
कोट्टियूर मंदिर का इतिहास माता सती की कहानी से जुड़ा हुआ है. इस पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार जब माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें भगवान शिव को उन्होंने नहीं बुलाया. उस यज्ञ का आयोजन कुट्टियूर मंदिर क्षेत्र में ही किया गया था.
मंदिर का नाम ‘कोट्टियूर’ माना जाता है कि यह ‘कट्टि-यूर’ से विकसित हुआ है, जिसका संबंध पुरलिमला के कट्टन वंश से जोड़ा जाता है. इस मंदिर का शिव लिंग स्वयंभू (स्वयं जमीन के अंदर से प्रकट हुआ) है. माना जाता है जो नदी के पत्थरों की वजह से यह एक ऊँचे मंच पर स्थापित है
अक्कारे और इक्कारे कोटि्टयूर मंदिर
यहां बावली नदी के किनारे पर दो मंदिर है अक्कारे कोट्टियूर और इक्कारे कोट्टियूर मंदिर. अक्कारे कोट्टियूर भगवान शिव का मंदिर है, जो साल में सिर्फ 28 दिनों के लिए खोला जाता है जब मंदिर के वार्षिक वैशाखमहोत्सवम् का आयोजन किया जाता है. इस साल भी वैशाखमहोत्सवम् में कई लोग शामिल हुए.
कोटि्टयूर मंदिर में कैसे होता है वैशाखमहोत्सवम् ?
कोट्टियूर मंदिर में 28 दिनों के लिए आयोजित होने वाला वैशाखमहोत्सवम् की शुरुआत भगवान को घी से स्नान करवाने से होती है. इसे नेय्यट्टम कहा जाता है.
वहीं वैशाखमहोत्सवम् का समापन भगवान को कोमल नारियल पानी के स्नान से संपन्न होता है. इस अनुष्ठान को एलेनीरट्टम कहा जाता है.
कोट्टियूर मंदिरों का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य के समय किया गया था. कहा जाता है कि कोट्टियूर मंदिर में आयोजित होने वाला वार्षिक महोत्सव वैशाखमहोत्सवम् के नियमों को भी शंकराचार्य ने ही बनाया था.
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