Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: जब जिन्ना ने लड़ा बाल गंगाधर तिलक का केस, जानें आखिर हुआ क्या था?

by Carbonmedia
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बाल गंगाधर तिलक, जो लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाने जाते हैं. आज उनकी 105वीं पुण्यतिथि है. उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी, महाराष्ट्र में हुआ था और निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ था. आज हम उनके बारे में एक किस्सा बताएंगे, जो मोहम्मद अली जिन्ना से जुड़ा हुआ है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहां अनेक नायक उभरे, वहीं 1908 में एक ऐसा ऐतिहासिक पल आया जब दो अलग-अलग विचारधाराओं के नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और मोहम्मद अली जिन्ना  ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक मोर्चे पर एक साथ खड़े हुए.
मोहम्मद अली जिन्ना ने बाद में पाकिस्तान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई. जिन्ना उस दौर में एक युवा और तेजतर्रार वकील थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में सक्रिय थे. वहीं तिलक जनता में ‘लोकमान्य’ के नाम से प्रसिद्ध, स्वराज को जन्मसिद्ध अधिकार मानने वाले पहले जननेता थे.
1908 का राजद्रोह केस केसरी में छपे लेख से उठा तूफानसाल 1908 में तिलक को उनके अखबार केसरी में प्रकाशित एक लेख के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इस लेख में उन्होंने क्रांतिकारियों खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी के बम हमले का समर्थन किया था. अंग्रेज़ों ने इसे देशद्रोह मानते हुए तिलक पर मुकदमा चलाया. इस मुकदमे में जिन्ना ने तिलक का कानूनी बचाव किया. उन्होंने न केवल तिलक के विचारों को वैध बताया, बल्कि अदालत में ब्रिटिश न्याय प्रणाली की मनमानी पर सवाल उठाए. दुर्भाग्य से, अदालत ने तिलक को 6 साल की सजा सुनाई और उन्हें बर्मा के मांडले जेल भेज दिया गया.
विरोध के बीच सहयोग का प्रतीकहालांकि जिन्ना इस मुकदमे में तिलक को सजा से नहीं बचा पाए, लेकिन इसी के बाद दोनों के बीच राजनीतिक समझ और सहयोग की नींव पड़ी. यही सहयोग 1916 के लखनऊ समझौते में परिलक्षित हुआ, जहां तिलक और जिन्ना ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक मंच पर लाकर हिंदू-मुस्लिम एकता का मजबूत संदेश दिया.
लखनऊ समझौता 1916 स्वराज की मांग में साझेदारीसाल 1916 में लखनऊ समझौता हुआ, जिसमें  स्वराज की मांग रखी गई. इसमें हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधित्व के लिए समान भागीदारी की बात कही गई. इसके अलावा, स्वराज की संयुक्त मांग, ब्रिटिश हुकूमत पर राजनीतिक दबाव बनाए रखने की बातें मुख्य रूप से शामिल थी. यह समझौता भारत के राजनीतिक इतिहास में सांप्रदायिक एकता की मिसाल बना.
गांधी और तिलक का रिश्तामहात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक के विचारों में भले ही फर्क रहा. तिलक जहां उग्र राष्ट्रवाद के पक्षधर थे, वहीं गांधी अहिंसा और सत्याग्रह में विश्वास रखते थे. बावजूद इसके, गांधी ने तिलक को ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा और उनकी मृत्यु पर गहन शोक व्यक्त किया. तिलक ने जहां 1916 में होम रूल लीग की स्थापना की, वहीं इसी विचार ने गांधी के असहयोग आंदोलन की राह आसान की.
जवाहरलाल नेहरू और तिलक का संबंधनेहरू उस समय युवा थे और तिलक के विचारों से गहरे प्रभावित थे. उन्होंने तिलक को “भारतीय क्रांति का जनक” कहा. तिलक के गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती जैसे सामाजिक आयोजनों ने राजनीतिक आंदोलनों को जनांदोलन में परिवर्तित किया और समाज को एकता के सूत्र में बांधा. साथ ही तिलक ने जातिवाद, अस्पृश्यता और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई.
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