Chhath Puja 2025 date: 2025 में छठ पूजा, नहाय खाय, खरना की तारीख नोट कर लें

by Carbonmedia
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Chhath Puja 2025 date: 2025 में छठ पूजा, नहाय खाय, खरना की तारीख नोट कर लेंछठ पूजा का नाम संस्कृत शब्द “षष्ठी” से आया है, जिसका अर्थ “छठा” होता है.  ये त्योहार दिवाली के छह दिन बाद या कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. ये पर्व सूर्य देव और छठी मैय्या को समर्पित है. मार्कण्डे पुराण में छठी मैया को प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी और भगवान सूर्य की बहन बताया गया है, जो संतान सुख और समृद्धि प्रदान करती हैं.
छठ पूजा आस्था का लोकपर्व है, जो 4 दिन तक चलता है. इसमें व्रती संतान की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए 36 घंटे का व्रत करती हैं. छठ पूजा मुख्य रूप से भारत के बिहार राज्य एवं उससे सटे नेपाल में मनायी जाती है. इस साल 2025 में छठ पूजा कब है यहां जान लें महत्वपूर्ण जानकारी.
छठ पूजा 2025 लिस्ट

नहाय खाय कब है
25 अक्टूबर 2025, शनिवार
 

खरना
26 अक्टूबर 2025, रविवार
 

संध्या अर्घ्य, छठ पूजा
27 अक्टूबर 2025, सोमवार
सूर्योदय सुबह 06:30 – शाम 05:40

उषा अर्घ्य
28 अक्टूबर 2025, मंगलवार
सूर्योदय सुबह 6.30 – शाम 5.39

छठ पर्व कैसे मनाते हैं ?

छठ पूजा के पहला दिन नहाय खाय – इस दिन व्रती स्नान करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं. पवित्र जल में, विशेषतः गङ्गा नदी में डुबकी लगायी जाती है. छठ व्रत का पालन करने वाली स्त्रियाँ इस दिन केवल एक समय भोजन करती हैं.
दूसरा दिन खरना – इस दिन व्रती उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर बनाकर छठी मैया को भोग लगाते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं. फिर व्रत की शुरुआत करते हैं.
तीसरे दिन शाम का अर्घ्य – इस दिन व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं.
चौथा दिन सुबह का अर्घ्य –  इस दिन व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करते हैं.

छठ पूजा की मान्यताएं
छठ पूजा को प्रतिहार, डाला छठ, छठी तथा सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. छठ पूजा के दौरान श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मैया से अपने बच्चों के लिए अच्छे स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि की कामना करते है.
छठ पूजा का इतिहास
छठ का संबंध रामायण और महाभारत से भी है. कुछ किंवदंतियों के अनुसार, देवी सीता और भगवान राम ने अपने निर्वासन से लौटने के बाद बिहार के मुंगेर जिले में पूजा की थी. उसी समय, कुंती ने संतान की प्राप्ति के लिए इसे किया, कुंति पुत्र का नाम कर्ण रखा गया. द्रौपदी ने भी अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने के लिए पूजा की थी. इन लोककथाओं ने पूजा को देश के उत्तरी क्षेत्र, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहुत लोकप्रिय बना दिया.
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