Delhi Latest News: दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक अनिल झा और 4 अन्य आरोपियों को राउज एवेन्यू कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने विधायक अनिल झा समेत अन्य आरोपियों को एससी-एसटी से जुड़े एक मामले से बरी कर दिया है. राहुल रिवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज जितेंद्र सिंह ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में दिल्ली पुलिस आरोपी के खिलाफ मामले को साबित करने में असफल रही.
कोर्ट ने यह भी कहा कि झूठे आरोपों से न केवल निर्दोष लोगों को कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा और मानसिक स्थिति पर भी गंभीर असर पड़ता है. दरअसल, संजय कुमार नाम के व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी कि 2 फरवरी 2016 को एक प्रोग्राम के दौरान AAP के विधायक अनिल झा और 4 अन्य लोगों ने संजय कुमार के साथ मारपीट की थी और जातिसूचक गालियां देकर उन्हें लज्जित किया था. इस आधार पर आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 323 ,34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.
इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस इकट्ठा करने में बरती गई लापरवाही- कोर्ट
राउज एवेन्यू कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, गवाहों की गवाही में बहुत ज्यादा विरोधाभास है, जिससे अभियोजन का मामला कमजोर पड़ गया और कथित जातिसूचक शब्द कहने की बात भी अभियोजन पक्ष साबित नहीं कर पाया. कोर्ट ने कहा कि अगर मान भी लें कि जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल हुआ है, तो भी यह घटना एक राजनीतिक बहस के दौरान हुई मौखिक झड़प से अधिक कुछ नहीं है. यहा जानबूझकर अपमान करने का प्रयोजन साबित नहीं होता. विशेष रूप से जब दोनों व्यक्ति एक ही राजनीतिक दल से लंबे समय से जुड़े हों.
हालांकि, कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की जांच पर भी नाराजगी जताई. कोर्ट ने पाया कि घटना का एक महत्वपूर्ण वीडियो क्लिप रिकॉर्ड में लाने की जरूरत थी. लेकिन, दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी ने न तो शिकायतकर्ता का मोबाइल फोन जब्त किया और न ही उस व्यक्ति का जिसने वीडियो बनाया था. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी ने इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस इकट्ठा करने में लापरवाही बरती है. जांच अधिकारी की गवाही के अनुसार, आरोपी अनिल झा वीडियो क्लिप में दिखाई ही नहीं दे रहे थे.
झूठे आरोपों के हमेशा गंभीर परिणाम होते हैं- कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोपों के हमेशा गंभीर परिणाम होते हैं. ऐसे झूठे मामलों में आरोपी व्यक्ति को समाज में कलंक, मेंटल हैरेसमेंट और सामाजिक हानि का सामना करना पड़ता है. किसी भी जांच अधिकारी को चाहिए कि वह निष्पक्ष रहकर सबूतों के आधार पर जांच करें. ताकि किसी भी निर्दोष के साथ कभी गलत न होने पाए. बहरहाल कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.