Devshayani Ekadashi 2025: हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. पुराणों के अनुसार इस दिन से चार माह तक भगवान विष्णु योग निंद्रा में रहते हैं. कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु की योग निंद्रा पूर्ण होती है. इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है.
देवशयनी के बाद चार माह तक मांगलिक कार्य जैसे यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश नहीं किए जाते हैं. इन चार महीनों को चातुर्मास कहते हैं. इनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास आरंभ होते ही भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंपकर खुद विश्राम के लिए चले जाते हैं इसीलिए इस दौरान शिव आराधना का भी बहुत महत्व है. सावन का महीना भी चातुर्मास में ही आता है इसलिए इस महीने में शिव की अराधना शुभ फल देती है.
2025 में देवशयनी एकादशी कब ?
देवशयनी एकादशी इस बार 6 जुलाई को पड़ रही है. इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाता ह इसलिए अब 6 जुलाई से करीब 4 महीनों तक मांगलिक काम नहीं होंगे. चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. चातुर्मास में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है. भगवान विष्णु के विश्राम करने से सभी तरह के मांगलिक कार्य रुक जाते हैं. इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है.
भगवान श्री नारायण की प्रिय हरिशयनी एकादशी या फिर कहें देवशयनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत आदि पर अगले चार मास के लिए विराम लग जाएगा. इसी दिन से सन्यासी लोगों का चातुर्मास्य व्रत आरम्भ हो जाता है. धार्मिक दृष्टि से ये चार महीने भगवान विष्णु के निद्राकाल माने जाते हैं.
वैज्ञानिक दृष्टि में चातुर्मास
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं इसलिए साधु-संत, तपस्वी इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं.
देवशयनी एकादशी 2025 तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी. इस साल यह पर्व रविवार 6 जुलाई 2025 को होगा. एकादशी तिथि 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे शुरू होगी और 6 जुलाई को रात 9:14 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार 6 जुलाई को ही यह व्रत रखा जाएगा और चातुर्मास की शुरुआत होगी, जो 1 नवंबर तक चलेगा.
शुभ योग
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर साध्य योग का संयोग रात 09:27 मिनट तक है. इसके बाद शुभ योग का निर्माण हो रहा है. इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से सभी प्रकार के शुभ कामों में सफलता मिलेगी. इसके साथ ही त्रिपुष्कर योग और रवि योग का भी संयोग बन रहा है.
भगवान शिव करेंगे सृष्टि का संचालन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए.
चातुर्मास में इन पर्वों की रहती है धूम
चातुर्मास में सबसे पहले सावन का महीना आता है. सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस माह में भगवान शिव की अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसके बाद गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणेश की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है.
4 महीने नहीं बजेगी शहनाई
चतुर्मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार चतुर्मास आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक रहता है। साल 2025 में चतुर्मास 6 जुलाई से शुरू होगा. इस दिन देवशयनी एकादशी भी है। 1 नवंबर को देवोत्थान एकादशी है. कहा जाता है कि इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम काल पूरा करने के बाद क्षीर सागर से निकल कर सृष्टि का संचालन करते हैं.
भगवान विष्णु और शिव पूजा
चातुर्मास में पूजा और ध्यान करने का विशेष महत्व है. देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करेंगे इस दौरान शिवजी सृष्टि का संचालन करेंगे. इन दिनों में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए.
चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और शिवजी का अभिषेक करना चाहिए.
विष्णुजी को तुलसी तो शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए.
साथ ही ऊँ विष्णवे नम: और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए.
इन दिनों में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है.
साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए.
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