DU के एडमिशन फॉर्म में उर्दू को लेकर विवाद, कांग्रेस ने घेरा तो बीजेपी बोली- ‘गलती कोई भी…’

by Carbonmedia
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DU Form Sparks Row: दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के अंडरग्रेजुएट एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा के विकल्प में उर्दू भाषा को नजरअंदाज करने पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है. कांग्रेस ने इसे सिर्फ़ एक क्लर्कल मिस्टेक नहीं बल्कि सोची-समझी साज़िश बताया है. वहीं बीजेपी ने इसे मानवीय भूल बताते हुए बेवजह की राजनीति से बचने की सलाह दी है.
कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. नरेश कुमार ने कहा दिल्ली विश्वविद्यालय में हो रही ये गलती दरअसल एक सोची-समझी योजना का हिस्सा है. ये आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश है. जब भी इसका विरोध होता है तब ये लोग बैकफुट पर आ जाते हैं. शिक्षा को जातियों और धर्मों में बांटने का काम बीजेपी कर रही है जो पूरी तरह गलत है. डॉ. नरेश कुमार ने यह भी कहा कि यह कोई मामूली क्लर्कल मिस्टेक नहीं बल्कि संविधान की भावना और समाज की एकता पर हमला है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को भी कटघरे में खड़ा किया और इस पूरी प्रक्रिया के लिए दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की.
उर्दू की अनदेखी या सांप्रदायिक साज़िश?
इस विवाद पर बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा अगर किसी गलती को जानकारी मिलते ही सुधार लिया जाए तो उसे गलत नीयत नहीं कहा जा सकता. विपक्ष इस मुद्दे पर भी राजनीति कर रहा है. गलती कोई भी कर सकता है लेकिन उसे वक्त रहते सुधार लेना अच्छी बात है. विपक्ष का काम ही है हर मुद्दे पर राजनीति करना लेकिन ऐसे गंभीर मसलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. 
इधर दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. आभा देव हबीब ने भी इस गलती पर गंभीर आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा उर्दू संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज एक मान्यता प्राप्त भाषा है. उसे मातृभाषा के विकल्प से गायब करना और मुस्लिम को एक भाषा की तरह पेश करना सांप्रदायिक सोच को दर्शाता है. ये केवल अज्ञानता नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया सांप्रदायिक हस्तक्षेप है.
DU में चूक या साज़िश? गंभीर सवाल, बहस जारी..
गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय देश के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है. हर साल लाखों छात्र इसमें दाखिले के लिए आवेदन करते हैं. ऐसे में इसके एडमिशन फॉर्म में इस तरह की चूक या छेड़छाड़ का मुद्दा स्वाभाविक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है. अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह वास्तव में गलती थी या फिर एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की कोशिश? फिलहाल विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस गलती को सुधारने की बात कही है, लेकिन बहस और आरोप-प्रत्यारोप थमने का नाम नहीं ले रहे हैं.
 

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