दिल्ली में एक टीवी चर्चा के दौरान चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और चुनावी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए गए. चर्चा में डिजिटल लेनदेन में भारत की वैश्विक स्थिति का उल्लेख किया गया, जिसमें बताया गया कि भारत में एक अरब से अधिक स्मार्टफोन और लगभग 90 करोड़ इंटरनेट कनेक्शन हैं, और देश डिजिटल लेनदेन में विश्व में नंबर एक है. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पर 2003 की गृह मंत्रालय की समिति का भी जिक्र हुआ, जिसमें लालू प्रसाद यादव, कपिल सिब्बल, अंबिका सोनी और प्रणब मुखर्जी जैसे सदस्य शामिल थे, और जिसने पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की सिफारिश की थी. बहस में विदेशी फंडिंग के आरोपों पर भी बात हुई, जिसमें यूएसएड (USAID) द्वारा भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने और जॉर्ज सोरोस द्वारा मोदी सरकार को हटाने के लिए एक बिलियन डॉलर रखने का दावा किया गया. बांग्लादेश के अखबार ‘द डेली स्टार’ में ‘मोदी हैज़ टू गो’ शीर्षक से लिखे गए लेख का भी हवाला दिया गया. असम की धुबरी सीट पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के रकीबुल हसन की 10.25 लाख वोटों से जीत और क्षेत्र में जनसांख्यिकीय बदलाव पर भी चर्चा हुई. आधार कार्ड को वोटर कार्ड से जोड़ने की प्रक्रिया में विरोधाभास और बिहार में आधार कार्ड को अमान्य बताने के दोहरे मापदंड पर सवाल उठे. ईवीएम (EVM) में 99% बैटरी और वोट प्रतिशत बताने में चुनाव आयोग की देरी पर भी चिंता व्यक्त की गई. नोटबंदी के बाद आरबीआई द्वारा पैसे की जानकारी देने में लगे समय और स्विस बैंक में खातों में वृद्धि पर भी सवाल उठाए गए. चर्चा में यह बात सामने आई कि ‘चुनाव आयोग की ये जिम्मेदारी है कि तमाम सवालों का सामना करें और एक पारदर्शी व्यवस्था भी यहाँ पर सुनिश्चित की जाए.’ राजनेताओं की भी जिम्मेदारी है कि वे जनता में भ्रम न फैलाएं और उन्हें अपने दस्तावेज बनवाने के लिए जागरूक करें.
Election Commission: वोटर लिस्ट और EVM पर Sudhanshu-Alok Sharma की तीखी बहस | Bihar Election
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