‘हवन’ हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा है. हवन में पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर मंत्रोच्चारण के साथ देवताओं को आहुति दी जाती है. हवन का उद्देश्य वातावरण की शुद्धि, मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और भगवान की कृपा प्राप्त करना होता है. हिंदू धर्म में हवन की परंपरा प्राचीन समय से लेकर अब तक चली आ रही है.
नवग्रह की शांति, गृह प्रवेश, यज्ञ, विशेष पर्व-त्योहार या संस्कार आदि में हवन का आयोजन किया जाता है. हवन के धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही लाभ बताए गए हैं. हवन में आहुति देते समय ‘स्वाहा’ बोलने की परंपरा है. आपने देखा होगा कि हवन में जब भी मंत्र उच्चारण के बाद अग्नि में आहुति दी जाती है तो स्वाहा शब्द का उच्चारण जरूर किया जाता है. यह केवल एक ध्वनि मात्रा नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक रहस्य भी छिपा है. आइए जानते हैं आखिर हवन में आहुति के समय स्वाहा बोलने कारण.
स्वाहा बोलने का कारण क्या है?
‘स्वाहा’ शब्द से एक पौराणिक कथा जुड़ी है, जिसके अनुसार स्वाहा एक देवी का नाम है, जोकि अग्निदेव की पत्नी हैं. प्राचीन समय में जब हवन और यज्ञ का आयोजन होता है था, तब देवताओं को दी जानी आहुति असुर छल से हड़प देते थे या उसमें विघ्न डालते थे. ऐसे में यज्ञ का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता था. इस समस्या के समाधान के लिए स्वाहा देवी प्रकट हुईं और अग्नि देव से विवाह की.
स्वाहा देवी ने यह वरदान प्राप्त किया कि, आहुति के समय बिना स्वाहा का उच्चारण किए बिना हवन स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसके बाद से ही हवन में आहुति देने के दौरान स्वाहा बोला जाता है. जिससे कि स्वाहा देवी के माध्यम से हवन की पवित्रता बनी रहे और देवताओं तक यज्ञ की आहुति पहुंच सके. हवन के दौरान स्वाहा बोलना हवन या यज्ञ को सुरक्षित और प्रभावी भी बनाता है.
स्वाहा का अर्थ और महत्व
स्वाहा को एक पवित्र मंत्र की तरह माना जाता है जो वैदिक मंत्रों का अभिन्न अंग भी है. इसका शाब्दिक अर्थ होता है पूर्ण समर्पण के साथ अर्पित किया गया. स्वाहा शब्द यह दर्शाता है कि, अग्नि में जो भी सामग्री अर्पित की जाती है वह पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ देवताओं तक पहुंचती है. इसके साथ ही स्वाहा शब्द पवित्रता और समर्पण को भी दर्शाता है. स्वाहा बोलते समय एक विशेष ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है,जोकि यज्ञ के माध्यम से वातावरण को शुद्ध करती है, मंत्र की शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है.
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