Gopeshwar Mahadev: वृंदावन के मथुरा में बनखंडी स्थित गोपेश्वर महादेव का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. इस मंदिर मे भगवान शिव सुबह नर और शाम में नारी के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. वैसे तो भगवान शिव के कई रूप हैं, लेकिन गोपेश्वर रूप से जुड़ा रहस्य अनोखा है. आइये जानते हैं आखिर कैसे शिव को प्राप्त हुआ यह रूप.
जब गोपी बन श्रीकृष्ण के माहरास में शामिल हुए शिव
कहा जाता है कि, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण गोपियों संग महारास कर रहे थे. इस रासलीला में श्रीकृष्ण अकेले पुरुष थे और 16 हजार 108 गोपियां थी. यह भी कहा जाता है कि, श्रीकृष्ण की यह महारास लीला शरद पूर्णिमा की रात्रि हुई थी. यह भी कहा जाता है कि, यह महारास एक रात्रि की थी, लेकिन छह मास तक चली थी.
कृष्ण ने अपनी योगमाया से छह महीनों तक रात्रि ही रहने दी. यानि शरद पूर्णिमा से लेकर अगले 6 महीनों तक सूर्योदय ही नहीं हुआ था. लोक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि, आज भी भगवान कृष्ण रात्रि के समय निधिवन में गोपियों के संग रास रचाते हैं. इसलिए दिन ढलने के बाद निधिवन में किसी को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है.
इस मनमोहक दृश्य के साक्षी सभी देवता हुए थे और हर कोई शामिल होना चाहते थे. शिव भी इस महारास में शामिल होकर आनंद लेना चाहते थे, लेकिन गोपियों ने कहा कि- यहां केवल गोपियां ही प्रवेश हो सकती है कोई पुरुष नहीं, तह शिव योगमाया शक्ति से गोपी के रूप में परिवर्तित हो गए और महारास में शामिल हो गए.
पी का रूप धारण कर शिव भी कृष्ण संग ताल से ताल मिलाकर महारास करने लगे. लेकिन कृष्ण ने उन्हें पहचान लिया और कहा- आओ गोपेश्वर! इतना ही श्रीकृष्ण ने अपने आराध्य देव को प्रणाम कर उनके इसी रूप में ब्रज में रहने का आग्रह भी किया. मथुरा में गोपेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव को महिला के रूप में श्रृंगार कर गोपेश्वर रूप में पूजा की जाती है.
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