हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के बाद शिमला जिले में वन भूमि से कब्जे हटाने की मुहिम को तेज कर दिया है. कोटखाई व कुमारसैन में वन भूमि पर बने बगीचे में सेब से लदे पेड़ों को काटा गया है. जिससे सेब बागवानों की चिंताएं बढ़ गई हैं. हिमाचल प्रदेश सेब उत्पादक संघ और किसान सभा ने सेब कटान की कार्रवाई को अवैज्ञानिक करार दिया है और हाईकोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के साथ सरकार से कोर्ट में सही पक्ष रखने की मांग उठाई है.
शिमला में पत्रकार वार्ता कर किसान नेता राकेश सिंघा ने कहा कि वन भूमि से कब्जे हटाने के नाम पर प्रदेश के किसानों को उजाड़ने का काम किया जा रहा है. अवैज्ञानिक और अमानवीय तरीके से सेब के पेड़ काटे जा रहे हैं. भारी बारिश के दौरान इस तरह से पेड़ों का कटान हो रहा जो त्रासदी को न्योता देता है. हाई कोर्ट के जज के आदेश पर सवाल उठाते हुए राकेश सिंघा ने कहा कि जो न्यायाधीश इस मामले को देख रहें हैं वह इसी मामले में वकील रह चुके हैं. ऐसे में उनको इस मामले से अलग रहना चाहिए था.
रूपरेखा कल हाटकोटी में की जाएगी तैयार
उन्होंने कहा कि हिमाचल सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष सही नहीं रखा जबकि धर्मशाला विधानसभा सत्र के दौरान भूमिहीनों को 10 बीघा जमीन देने का बिल पास किया था, लेकिन दूसरी तरफ कोर्ट में ऐसा पक्ष नहीं रखा गया. दोहरा मापदंड सरकार अपना रही है जिसकी वह निंदा करते हैं. बागवान सेब के पौधों के कटाव को स्वीकार नहीं करेगा और इसके खिलाफ बड़ा जन आंदोलन खड़ा किया जाएगा जिसकी रूपरेखा कल हाटकोटी में तैयार की जाएगी.
वन अधिकार अधिनियम आ रहा है आड़े
हिमाचल प्रदेश में कुल 55.67 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें से लगभग 6.15 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है, जो कि 11 फीसदी के लगभग बनती है. जबकि 37,033 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है. अब परिवारों की संख्या बढ़ने से खेती योग्य भूमि कम हो रही है. जबकि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत कोई भी व्यक्ति वन भूमि में कब्जा नहीं कर सकता है. अब लगातार हिमाचल में वन भूमि से पांच बीघा तक हिस्सा भूमिहीनों को देने की मांग उठ रही है. लेकिन वन अधिकार अधिनियम उसके आड़े आ रहा है.
जिन लोगों ने वन भूमि में कब्जे कर रखे थे उन्होंने वहां पर सेब के पेड़ लगा दिए हैं. अब उन्हीं अवैध कब्जों को हटाने के आदेश कोर्ट द्वारा दिए गए हैं. जिसके तहत सेब के पेड़ों पर आरी चल रही है. किसान सभा मांग कर रही है कि पेड़ों को न काटा जाए सरकार इसको अपने कब्जे में ले.
नीति बनाकर ऐसे बगीचे अपने कब्जे में लेने की उठी थी बात
2018 में भी इस तरह की मुहिम चली थी, जिसमें सरकार को इस पर नीति बनाकर ऐसे बगीचे अपने कब्जे में लेने की बात उठी थी, लेकिन सरकार ने अब कोर्ट में कह दिया है कि सरकार के पास ऐसा तंत्र नहीं है कि वह बगीचे की देखभाल कर सके. सन 2000 के हलफनामे के मुताबिक प्रदेश में 1 लाख 67 हजार लोगों ने अवैध कब्जों को नियमित करने की अर्जी सरकार को दी थी. इसकी संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है.
Himachal News: हिमाचल में सेब बागानों पर संकट! वन भूमि से कब्जे हटने पर किसान आक्रोशित
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