JNU में फिर उठी अपनी एंट्रेंस परीक्षा की मांग, छात्रसंघ का आंदोलन तेज; जानें छात्रों की मांग और कुलपति का रुख

by Carbonmedia
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दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर छात्रों और प्रशासन के बीच विवाद के केंद्र में है. इस बार मुद्दा है विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा (JNUEE) को वापस लाने की मांग. जेएनयू छात्रसंघ (JNUSU) ने इस मांग को लेकर अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है.
छात्रों की मांग है कि कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) की जगह विश्वविद्यालय को खुद से प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, जैसे पहले हुआ करता था. छात्रों का मानना है कि जेएनयू की अपनी परीक्षा (JNUEE) ज्यादा न्यायसंगत और पारदर्शी थी, जिसमें सामाजिक विविधता और विचारधारात्मक विविधता को सम्मान मिलता था.
इस मुद्दे को लेकर 24 मई को छात्रसंघ ने एक जनमत संग्रह कराया था, जिसमें करीब 93 प्रतिशत छात्रों ने JNUEE के समर्थन में मतदान किया. यानी बड़ी संख्या में छात्र चाहते हैं कि प्रवेश प्रक्रिया पहले जैसी ही हो.
छात्रसंघ अध्यक्ष नीतीश कुमार ने जानकारी दी कि वे कई बार कुलपति से इस मुद्दे पर मिलने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन हर बार प्रशासन की ओर से कुछ शर्तें आ जाती हैं. हाल ही में कुलपति कार्यालय ने ईमेल के जरिये यह शर्त रखी कि बैठक तभी होगी जब छात्रसंघ के चारों पदाधिकारी मौजूद हों. लेकिन नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि जनमत संग्रह अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव की सहमति से कराया गया था, संयुक्त सचिव (एबीवीपी प्रतिनिधि) की इसमें कोई भूमिका नहीं थी.
छात्रों का कहना है कि अगर हैदराबाद विश्वविद्यालय और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय अपनी-अपनी प्रवेश परीक्षाएं सफलतापूर्वक आयोजित कर सकते हैं, तो जेएनयू ऐसा क्यों नहीं कर सकता? उनका तर्क है कि CUET जैसी परीक्षा का ढांचा जेएनयू जैसे संस्थान की विशिष्टता को ध्यान में नहीं रखता. जेएनयूएसयू अब विश्वविद्यालय के हर कोने दफ्तरों, विभागों और छात्रावासों में जाकर समर्थन जुटाने में जुटा है. परिचर्चाएं आयोजित की जा रही हैं, ताकि अधिक से अधिक छात्र इस अभियान से जुड़ सकें.
छात्रसंघ का क्या कहना?
अभी तक प्रशासन की ओर से इस मांग पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन छात्रसंघ का कहना है कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं और जब तक जेएनयूईई की बहाली नहीं होती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा. कुल मिलाकर यह मामला अब सिर्फ परीक्षा प्रणाली का नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और छात्र भागीदारी के अधिकार से भी जुड़ चुका है. आने वाले दिनों में यह आंदोलन और तेज हो सकता है.
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