Ladakh: लद्दाख की झाड़ियों में 46 साल बाद दिखा ‘गुमशुदा’ पक्षी, 3,200 मीटर की ऊंचाई पर मिला सबूत

by Carbonmedia
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लद्दाख की ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों में 3,200 मीटर की ऊंचाई पर एक दुर्लभ पक्षी लॉन्ग-बिल्ड बुश वॉब्लर (Long-billed Bush Warbler) की 46 साल बाद फिर से पुष्टि हुई है. इसे आखिरी बार 1979 में लद्दाख में देखा गया था. इस अद्भुत खोज को 5 सदस्यीय विशेषज्ञ टीम ने अंजाम दिया है. जिन्होंने ‘खो चुके पक्षियों’ की तलाश में यह विशेष अभियान शुरू किया था.
‘क्लिक-क्लिक’ की आवाज से मिला सुराग
टीम जब सुरू घाटी की झाड़ियों में थी, तभी उन्हें एक कीड़े जैसी ‘क्लिक-क्लिक-क्लिक’ की आवाज सुनाई दी. यह वही सिग्नेचर कॉल थी, जो इस प्रजाति के होने का इशारा करती है. कुछ देर बाद जब कैमरे में इसकी तस्वीरें कैद हुईं, तो यह पुष्टि हो गई कि दशकों से ‘गुमशुदा’ समझा जाने वाला यह पक्षी अब भी जिंदा है.
इस पक्षी (Locustella major) को आखिरी बार 1979 में ब्रिटिश वैज्ञानिकों की एक टीम ने लद्दाख में देखा था. उसके बाद सिर्फ एक बार 2023 में गिलगित-बाल्टिस्तान में इसकी झलक मिली थी. लेकिन तब कोई फोटोग्राफिक सबूत नहीं था. इस बार न केवल आवाज बल्कि दृश्य प्रमाण भी मौजूद हैं.
विलो पेड़ पर पहली बार देखा गया
पक्षी विशेषज्ञ जेम्स ईटन की मदद से टीम ने सुरू घाटी की टेरेस फार्मिंग वाली झाड़ियों में तलाश शुरू की. हैरानी की बात ये रही कि यह पक्षी इस बार एक विलो पेड़ पर देखा गया. जो कि अब तक इसके आवास की सूची में नहीं था.
अब तक की सबसे ऊंची साइटिंग
3,200 मीटर की ऊंचाई पर यह पक्षी पहली बार देखा गया है. यह इसकी अब तक की सबसे ऊंची पुष्टि की गई साइटिंग मानी जा रही है, जो बताती है कि यह प्रजाति धीरे-धीरे और ऊंचे क्षेत्रों की ओर बढ़ रही है.
जलवायु परिवर्तन की चेतावनी
टीम लीडर हारीश थंगराज का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी बस्तियों के बढ़ते दबाव के कारण यह प्रजाति अपने पारंपरिक इलाकों से खिसक रही है. यही वजह है कि अब यह ऊंचे, शांत और कम आबादी वाले इलाकों में देखी जा रही है.
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने इस पक्षी को ‘नियर थ्रेटेंड’ की सूची में रखा है, यानी यह संकट के नजदीक है. अगर इसके प्राकृतिक आवास को सुरक्षित नहीं किया गया, तो आने वाले सालों में यह वाकई लुप्त हो सकता है.
बर्ड एक्सपर्ट का कहना है कि इस खोज ने एक बार फिर साबित किया कि भारत में अभी भी बहुत कुछ ऐसा छिपा है जो वैज्ञानिकों और संरक्षणकर्ताओं की नजर से ओझल है. ये जंगल हमारे लिए अमूल्य हैं और इन्हें बचाना हमारी जिम्मेदारी है.

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