Parivartini Ekadashi 2025: चार माह की योगनिद्रा में इस दिन करवट बदलते हैं भगवान विष्णु, जानें कथा

by Carbonmedia
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भाद्रपद (भादो) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा, जोकि इस साल बुधवार 3 सितंबर 2025 को पड़ रही है. इसे पद्मिनी एकादशी, पद्मा एकादशी, पार्श्व एकादशी, जलझूलनी एकादशी, जयंती एकादशी, वामन एकादशी, डोल ग्यारस और वामन ग्यारस आदि जैसे नामों से भी जाना जाता है. इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन रूप की पूजा की जाती है.
आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल की एकादशी तक की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है. यह हिंदू के लिए महत्वूर्ण समय माना जाता है. चातुर्मास के चार माह की अवधि में भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में होते हैं और परिवर्तिनी एकादशी के दिन वे निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं. आइये जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी की कथा. इस कथा का पाठ परिवर्तिनी एकादशी की पूजा में जरूर करना चाहिए.
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha in Hindi)
भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के नाम और महिमा के बारे में पूछते हैं. तब भगवान कृष्ण कहते हैं- हे युधिष्ठिर! सभी पापों का नाश करने वाली और उत्तम फल प्रदान करने वाली इस एकादशी की महिमा में तुम्हें बताता हूं, ध्यान से सुनो. यह पद्मा या परिवर्तिनी एकादशी कहलाती है. जो व्यक्ति इस एकादशी पर मेरे वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
जो लोग कमलनयम भगवान का कमल से पूजा करते हैं, वे भगवान को अपने समीप पाते हैं. जिसने भाद्रपद शुक्ल की एकादशी का पूजन और व्रत कर लिया, समझो उसने तीनों लोकों का पूजन कर लिया. इसलिए इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए. इसी दिन श्रीहरि चातुर्मास के दौरान करवट भी लेते हैं, जिस कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है.
युधिष्ठिर कहते हैं- हे प्रभु! मुझे यह संदेह हो रहा है कि सोते हुए आप किस प्रकार करवट लेते हैं. आपने किस तरह से राजा बलि को बांधा और वामन अवतार लेकर क्या-क्या लीलाएं की? इस व्रत की विधि क्या है? कृपया मुझे बताएं.
श्रीकृष्ण ने कहा- हे राजन्! त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था, जो मेरा परम भक्त था. मेरी पूजा करने के साथ ही वह दान-पुण्य के काम भी करता था. ब्राह्मणों की पूजा और यज्ञ आयोजन भी कराता था. लेकिन एक बार उसने द्वेष के कारण इंद्रलोक को जीत लिया. इसके बाद सभी देवतागण परेशान हो गए और मेरे पास आए.
बृहस्पति, इंद्र और सभी देवता मेरे पास आकर वेद मंत्रों द्वारा मेरी स्तुति करने लगे. तब अंतत: मैंने निद्रावस्था में करवट ली और देवताओं को सबकुछ ठीक करने का आश्वासन दिया. मैंने वामन अवतार लिया, जोकि मेरा पांचवा अवतार है. वामन रूप में मैं बलि के पास गया उससे दान में तीन पग भूमि मांग ली. बलि ने मुझे तीन पग भूमि देने का वचन दिया. तब मैंने अपना आकार बढ़ा लिया. मैंने एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्गलोग नाप लिया. इसके बाद राजा बलि से कहा कि, अब तीसरा पग कहां रखूं?
बलि मेरी माया को समझ गया था, उसने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना तीसरा पग उसके मस्तक पर रख दिया, जिससे वह पाताल लोक चला गया. वह मेरा परम भक्त था. इसलिए मैंने उसे पाताल लोक का राजा बना दिया. उसकी विनम्रता और भक्ति भाव को देखकर मैंने उसे वचन दिया कि, मैं सदैव तुम्हारे निकट रहूंगा. जो जातक परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखकर इस कथा का श्रवण या पठन करते हैं, उन्हें हजार अश्वमेध यज्ञ कराने जैसा फल मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा मिलती है.

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