PoK की कब और कैसे होगी वापसी? 10 दिन में 3 बार जिक्र, समझें क्या है भारत का बड़ा प्लान

by Carbonmedia
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पहलगाम अटैक और बदले के लिए चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद से PoK का शोर फिर से सुनाई देने लगा है. उस कसक की याद दिलाई जाने लगी है जो कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान के कब्जे के बाद से हर हिंदुस्तानी के दिल में है. लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जो कहा उसके मुताबिक पीओके में खुद भारत में शामिल होने की आवाज उठेगी. पीओके खुद कहेगा कि वो हिंदुस्तान का अटूट हिस्सा है और उसमें शामिल होकर रहेगा. तो क्या इस बयान के बाद ये मान लेना चाहिए कि पीओके युद्ध से नहीं बल्कि बातचीत के जरिए देश को वापस मिलेगा और अगर ये हुआ तो कैसे होगा और क्यों होगा. आज हम इसी सवाल का जवाब ढूंढेंगे.


देश की सरकार हो, विपक्षी पार्टियां हों या फिर भारत का एक आम नागरिक हर किसी के दिल में कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान के कब्जे की टीस बाकी है. गिलगित बालटिस्तान से लेकर हुंजा वैली के वापस हिंदुस्तान में आने का इंतजार बाकी है. अब सवाल ये है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लाना ये सरकार का सिर्फ एक डायलॉग भर है या फिर वाकई उसे वापस लाने की जमीन तैयार हो रही है? देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान ने कुछ जवाब भी दिए हैं और कुछ सवाल भी पैदा किए हैं. 


रक्षा मंत्री डंके की चोट पर कह रहे हैं कि करने को तो वो बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन रास्ता शक्ति के साथ संयम का चुना, तो क्या रक्षा मंत्री का इशारा पीओके की तरफ है. क्या इस मतलब ये निकाला जाए कि जब पहलगाम अटैक के बाद ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को जवाब दिया गया उस वक्त शक्ति के इस्तेमाल से पीओके को हासिल किया जा सकता था लेकिन देश ने संयम का रास्ता चुना, क्योंकि रक्षा मंत्री कह रहे हैं बात तो अब सिर्फ पीओके पर होगी.


संदेश साफ है, अब कूटनीति के जरिए पीओके को वापस लाने की तैयारी है और रक्षा मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि पीओके हिंदुस्तान और जम्मू-कश्मीर के विकास को देखकर खुद आवाज उठाएगा और कहेगा कि मैं भारत का हिस्सा हूं और भारत में शामिल रहूंग.  बयान किसी सामान्य नेता का नहीं है बल्कि देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का है जो बेहद गंभीरता के साथ अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं. यहीं से सवाल खड़ा होता है कि क्या वाकई पीओके खुद वापस आएगा? लेकिन ये होगा कैसे? और ऐसा नहीं है कि सिर्फ रक्षा मंत्री ने ये बयान दिया है. 10 दिन के भीतर पीएम मोदी दो बार पीओके का जिक्र कर चुके है.


पीओके का बार-बार जिक्र करना और पाकिस्तान को पीओके पर बात करने के लिए मजबूर कर देना. ये बातें क्या देश की बदली हुई नीति की तरफ इशारा करती है. क्योंकि पीओके को वापस लाने के तो सिर्फ दो ही रास्ते हैं. पहला रास्ता है बातचीत के जरिए और दूसरा रास्ता है युद्ध का. मोदी और रक्षा मंत्री के बयान से साफ है कि पाकिस्तान को पीओके पर बात करने के लिए मजबूर होना होगा और पीओके पर दावा छोड़कर उसे भारत को सौंपना होगा . लेकिन क्या ये इतना आसान है? 


7 साल पहले 2019 में जब देश की संसद में खड़े होकर गृह मंत्री अमित शाह ने पीओके को लेकर ये बयान दिया था तो मानो पूरे देश की भावनाओं को उड़ेल कर रख दिया था.गृह मंत्री ने बात बिल्कुल सटीक कही थी क्योंकि पीओके जमीन का एक टुकड़ा भर नहीं है बल्कि वो हिंदुस्तान का मुकुट है. गिलगित से लेकर बालटिस्तान तक जमीन पर मौजूद वो जन्नत जो अखंड भारत को पूरा करती है


पाकिस्तान ने कश्मीर के जिस हिस्से पर कब्जा किया है उसे तीन हिस्सों में बांट रखा है. एक हिस्सा जो पाकिस्तान से होते हुए चीन के कब्जे में चला गया है जिसे अक्साई चीन के नाम से जाना जाता है. दूसरा हिस्सा गिलगित बालटिस्तान का है और बचा हुआ तीसरा हिस्सा पीओके का है. पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर का 5 हजार 180 वर्ग किमी का इलाका चीन को दे दिया है. दूसरे हिस्से यानि गिलगित में 14 जिले हैं, बाकी जो बचा हुआ हिस्सा पीओके का है उसमें 10 जिले आते हैं.


कश्मीर के इस हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा नहीं होता अगर आजादी के वक्त जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह ने अलग रहने की बात न की होती . पीओके बनने की कहानी शुरू होती है साल 1947 में बंटवारे के कुछ दिनों बाद से ही. 1947 का वो वक्त जब हरि सिंह जम्मू कश्मीर के राजा हुआ करते थे . 12 अगस्त 1947 को हरि सिंह ने फैसला लिया कि वो न तो भारत के साथ रहेंगे न पाकिस्तान के साथ . जम्मू कश्मीर को उन्होंने स्वतंत्र रखा . लेकिन कुछ दिनों बाद ही पाकिस्तानी फौज ने कबायलियों की आड़ में कश्मीर में घुसपैठ कर दी. 22 अक्टूबर 1947 -जब पाकिस्तानी कबायली ट्रकों में भरकर कश्मीर में घुसे थे . 23 अक्टूबर को पाकिस्तानी कबायलियों ने लूटपाट और मारपीट को अंजाम देते हुए जम्मू-कश्मीर के हिस्सों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था.



  • 24 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत से सैनिक सहायता की मांग की . कबायली श्रीनगर की तरफ बढ़ रहे थे.

  • 25 अक्टूबर 1947 को भारत सरकार ने हरि सिंह को भारत में शामिल होने के लिए विलय पत्र पर दस्तखत करने को कहा . उधर पाकिस्तानी फौज खुलकर कबायलियों के साथ कश्मीर में घुस चुकी थी.

  • 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह श्रीनगर से जम्मू आ गये और उस दिन उन्होंने भारत के साथ विलय की घोषणा की.

  • 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना श्रीनगर पहुंची और फिर उसने मोर्चा संभाला .

  • 1 जनवरी 1948 को भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया. 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम हो गया. 


भारत के हिस्से में जितना भाग था वो भारत के पास ही रहा और पाकिस्तान ने जिस हिस्से पर कब्जा किया वो हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया. 2014 में देश की सत्ता में आने के बाद से बीजेपी बार-बार पीओके को वापस लाने की बात दोहराती रही है और पिछली सरकार से कहां चूक हुई ये याद दिलाती रही है. पीओके को लेकर देश के मन में क्या भावना है उसे इस तस्वीर के जरिए समझिए जो मध्य प्रदेश के सतना से आई. थल सेना के प्रमुख उपेंद्र द्विवेदी अपनी पत्नी के साथ चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य से मिलने पहुंचे तो दीक्षा देने के बाद जगद्गुरू ने गुरु दक्षिणा में थल सेना प्रमुख से pok मांग लिया


थल सेना प्रमुख ने वादा किया कि गुरु दक्षिणा जरूर मिलेगी. भारत की संसद में बाकायदा पीओके वापस लाने का प्रस्ताव पास हो चुका है और मोदी सरकार के ताजा बयानों से पीओके के वापस आने की रूपरेखा का भी पता चल रहा है


अब आपके मन में ये सवाल होगा कि भला पीओके खुद क्यों आएगा? और अगर खुद ही आना होता तो इतने साल बीत गए.. तब क्यों नहीं आया? तो इसका जवाब है पीओके की हर दिन बदतर होती हालत और पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ उनकी नाराजगी. पाकिस्तान की सेना और सरकार पीओके को आतंक के अड्डे के तौर पर इस्तेमाल करती है. ऑपरेशन सिंदूर में लश्कर और जैश के जिन आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया उसमें से ज्यादातर पीओके में मौजूद थे.


पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में ऐसी तस्वीरें आम हैं, जहां हर कोने में विरोध के सुर सुनाई देते हैं. पीओके में मुजफ्फराबाद, नीलम वैली, मीरपुर और कोटली जैसे इलाके आते हैं.. जो देखने में बेहद खूबसूरत हैं लेकिन फायदे के लिए पाकिस्तान ने इस हिस्से को बेहद बदसूरत बना रखा है. मीरपुर से लेकर भिंबर वैली तक रहने वाले लोग पाकिस्तान के चंगुल से आजाद होकर श्रीनगर, सोनमर्ग और गुलमर्ग वाली जिंदगी को जीना चाहते हैं.


जम्मू-कश्मीर जो विकास की नई उड़ान भर रहा है जहां रोजगार से लेकर इंफ्रास्ट्रक्टर की मजबूत नींव खड़ी हो रही है. स्कूल से लेकर अस्पताल तक बनाए जा रहे हैं



  • जम्मू-कश्मीर की जीडीपी 2.20,204 करोड़ है जबकि पीओके की हमसे एक तिहाई यानि 77 हजार 723 करोड़

  • जम्मू कश्मीर के विकास के लिए 1 लाख 6 हजार 641 करोड़ का बजट रखा गया है जबकि पीओके के लिए 7 हजार 921 करोड़ का

  • जम्मू कश्मीर में 35कॉलेज और यूनिवर्सिटीज हैं जबकि पीओके में सिर्फ 6 और ये तो सिर्फ झांकी है ऐसे कई मापदंड है जहां पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर जम्मू कश्मीर के सामने कहीं नहीं टिकता

  • जम्मू कश्मीर का पूरा क्षेत्रफल 2 लाख 22 हजार 236 स्क्वायर किलोमीटर का है.

  • भारत के पास अभी 1 लाख 1 हजार 387 वर्ग किलोमीटर है. जबकि पाकिस्तान के पास 78 हजार 114 वर्ग किलोमीटर  और चीन के पास 42 हजार 735 वर्ग किलोमीटर का इलाका है. 


मतलब ये कि जितना हिस्सा भारत के पास है उससे ज्यादा हिस्सा इस वक्त चीन और पाकिस्तान के कब्जे में है और उसके जरिए होता क्या है वो देखिए. पाकिस्तान ने पीओके का बड़ा हिस्सा चीन को सौंप रखा है और इसी के जरिए चीन पाकिस्तान में अपने पैर पसार रहा है. सड़क के जरिए एक नया रूट बना रहा है. चीन गिलगित के जरिये पाकिस्तान में घुसा हुआ है. और हिंदुस्तान को आंख दिखाने की कोशिश करता है. पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ के पीछे ये बेहद अहम वजह है. अब समझिए अगर पीओके भारत का हिस्सा बन गया तो क्या होगा. पीओके हिंदुस्तान में शामिल हुआ तो हर तरीके के अलगाववाद से लेकर आतंकवाद तक और कश्मीर घाटी में होेन वाली तमाम भारत विरोधी गतिविधियों का अंत हो जाएगा. 


अगर पीओके हिंदुस्तान में शामिल हुआ तो देश के दो दुश्मन कमजोर हो जाएंगे क्योंकि पाकिस्तान और चीन के बीच का संपर्क टूट जाएगा. जो पीओके के जरिए एक दूसरे के साथी बने हुए हैं. पीओके हासिल होगा तो भारत की सीमाएं सीधे अफगानिस्तान से जुड़ जाएंगी.


गुरुवार को विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस ने एक बार फिर कहा कि पाकिस्तान से अब बात सिर्फ पीओके के मुद्दे पर होगी. पीओके का बार-बार जिक्र करना और पाकिस्तान को पीओके पर बात करने के लिए मजबूर कर देना. ये बातें क्या देश की बदली हुई नीति की तरफ इशारा करती है. क्योंकि पीओके को वापस लाने के तो सिर्फ दो ही रास्ते हैं. पहला रास्ता है बातचीत के जरिए और दूसरा रास्ता है युद्ध का. मोदी और रक्षा मंत्री के बयान से साफ है कि पाकिस्तान को पीओके पर बात करने के लिए मजबूर होना होगा और पीओके पर दावा छोड़कर उसे भारत को सौंपना होगा . लेकिन क्या ये इतना आसान है?

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