दिल्ली में मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के मुद्दे पर एक बड़ी बहस हुई। चर्चा का मुख्य विषय यह था कि क्या इस प्रक्रिया से गरीब और वंचित मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। कुछ प्रतिभागियों ने तर्क दिया कि आधार कार्ड जन्मतिथि या नागरिकता का प्रमाण नहीं है, जबकि वोट देने का अधिकार भारत के नागरिक को ही है जिसकी उम्र 18 साल से अधिक हो। चुनाव आयोग पर सवाल उठाए गए कि वह अव्यवहारिक शर्तें क्यों रख रहा है और सिर्फ बिहार में ही समीक्षा क्यों हो रही है। यह भी कहा गया कि चुनाव आयोग का काम नागरिकता तय करना नहीं है, यह गृह विभाग का काम है। उच्चतम न्यायालय के पुराने फैसलों का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि किसी को भी मताधिकार से वंचित करना असंवैधानिक है और चुनाव आयोग नागरिकता का प्रमाण नहीं मांगेगा। बहस में यह चिंता व्यक्त की गई कि यह प्रक्रिया मुसलमानों, गरीबों, शोषितों और वंचितों को मताधिकार से वंचित कर सकती है। एक महत्वपूर्ण बात यह कही गई कि “इटरनल विजिलेंस इस दी प्राइस ऑफ़ लिबर्टी”। कल सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होनी है, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी होने की उम्मीद है।
Sandeep Chaudhary: क्या गरीब और वंचितों से छिनेगा वोट का अधिकार? EC पर सवाल | Bihar Election
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