सावन की शुरुआत हो चुकी है और इस महीने भगवान शिव की पूजा का महत्व बढ़ जाता है. खासकर हिंदू धर्म में शिवलिंग पूजन का विशेष महत्व है. सावन महीने की शुरुआत होते ही शिवभक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक आदि करते हैं. कावड़ यात्रा के दौरान भी कांवड़िए कांवड में पवित्र गंगाजल भरकर शिवलिंग पर अभिषेक करने के लिए शिवधाम या शिवालय पहुंचते हैं.
लेकिन शास्त्रों में भगवान शिव के शिवलिंग रूप की पूजा के लिए कुछ जरूरी नियम बताए गए हैं, जिसका पालन सभी को करना चाहिए. खासकर महिलाओं के लिए अलग से कुछ नियम बताए गए हैं. इसलिए शिवलिंग की पूजा करते समय महिलाएं इन अनुष्ठानों और नियमों के बारे में जरूर जान लें.
शिवलिंग पूजन का महत्व
शिव ऐसे एकमात्र देवता हैं जोकि लिंग रूप में पूजे जाते हैं. शिव का अर्थ है ‘परम कल्याणकारी’ और लिंग का है ‘सृजन’. वेदों और वेदान्त के अनुसार, लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए किया जाता है, जोकि 17 तत्वों से बना होता है. इसमें मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु हैं. वायु पुराण के मुताबिक, प्रलयकाल में संपूर्ण सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और फिर से सृष्टिकाल में जिससे प्रकट हो जाती है वही लिंग है. इस तरह विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग का प्रतीक है.
क्या है नंदी मुद्रा जिसमें महिलाओं को करनी चाहिए शिवलिंग पूजा
शास्त्रों में शिवलिंग को पुरुषतत्व का प्रतिनिधित्व माना गया है. इसलिए कहा जाता है कि, महिलाओं को शिवलिंग की पूजा बिना स्पर्श किए ही करनी चाहिए. लेकिन अगर आप शिवलिंग का आशीर्वाद लेना चाहती हैं या श्रद्धापूर्वक शिवलिंग को छूती हैं तो ऐसे में नंदी मुद्रा में ही शिवलिंग को स्पर्श करें.
नंदी मुद्रा ऐसी मुद्रा को कहा जाता है, जिसमें नंदी की तरह की बैठा जाता है. इसमें पहली और आखिरी ऊंगली को सीधा रखा जाता है और बीच की दो उंगलियों को अंगूठे से जोड़ा जाता है. मान्यता है कि इस मुद्रा में किए पूजन से शिव भी प्रसन्न होते हैं और हर कामना पूर्ण करते हैं.
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