Shibu Soren Death: शिबू सोरेन के परिवार से लेकर झारखंड निर्माण तक की अनसुनी कहानी, पढ़ें पूरी डिटेल

by Carbonmedia
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झारखंड निर्माण के महानायक कहे जाने वाले शिबू सोरेन का आज (4 अगस्त) दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में 81 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की संस्थापक की थी और राज्य के 3 बार CM भी रह चुके थे.
काफी लंबे समय से बीमार चल रहे शिबू सोरेन को आदिवासी समाज में ‘दिशोम गुरु’ के रूप में जाना जाता है. वर्तमान में राज्य का कमान उन्हीं के बेटे हेमंत सोरेन के हाथों में है. ऐसे में आइए जानते हैं उनके पारिवारिक इतिहास के बारे में.
शिबू सोरेन के परिवार में कौन-कौन?
शिबू सोरेन का पारिवारिक जीवन सरल और ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ा रहा. उनकी शादी बहुत कम उम्र में हुई थी. उनकी पत्नी का नाम रूपी किस्कू है. उनके तीन बेटे दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन और एक बेटी अंजलि सोरेन हैं. 
उनके बेटे दुर्गा सोरेन का निधन 39 की उम्र में साल 2009 में ही हो गया था जबकि दूसरे बेटे हेमंत सोरेन (49) फिलहाल झारखंड के मुख्यमंत्री हैं. हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन हैं जो कि झारखंड विधानसभा में विधायक हैं. वहीं तीसरे बेटे बसंत सोरेन (47) झारखंड सरकार में मंत्री हैं. 
शिबू सोरेन कब-कब रहे मंत्री?
राजनीतिक रूप से, शिबू सोरेन ने 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की. वे 1980, 1986, 1989, 1991, 1996 और 2004 में दुमका से लोकसभा सांसद बने. 2002 में वे राज्यसभा सदस्य भी रहे. केंद्र सरकार में वे 2004 में कोयला मंत्री बने, लेकिन चिरुडीह नरसंहार केस के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
वे राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 2005, 2008-09 और 2009-10 में झारखंड के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली, हालांकि पहली बार बहुमत न साबित कर पाने पर उन्हें जल्द इस्तीफा देना पड़ा.
झारखंड निर्माण में शिबू सोरेन की भूमिका
झारखंड को बिहार से अलग करने में शिबू सोरेन की अहम भूमिका रही है जो कि साल 2000 के नवंबर में सफलता पूर्वक हुआ था. इसकी शुरुआत होती है 1970 के दशक में जब से उन्होंने अलग राज्य की मांग का नेतृत्व किया. महज 28 साल की उम्र में 1972 में उन्होंने JMM की स्थापना कि जो कि वर्तमान में सत्तारूढ़ पार्टी है. 
1987 में आंदोलन को तेज किया गया, और 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ. ‘धान काटो आंदोलन’ और महाजनी प्रथा के खिलाफ उनके संघर्ष ने हजारों आदिवासियों, किसानों और मज़दूरों को संगठित किया. वे एक आंदोलनकारी नेता से मुख्यमंत्री और मंत्री तक के सफर में हमेशा जमीनी सरोकारों से जुड़े रहे.

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