SIR का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं से बोला सुप्रीम कोर्ट- अभी रोक की जरूरत नहीं, अगर आपसे सहमत हुए तो पूरी प्रक्रिया..

by Carbonmedia
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (28 जुलाई, 2025) को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की. कोर्ट ने SIR की ड्राफ्ट लिस्ट पर कोई रोक नहीं लगाई है.
कोर्ट मामले पर आज विस्तृत सुनवाई नहीं कर सकी क्योंकि जस्टिस सूर्यकांत को मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई के साथ एक प्रशासनिक बैठक में शामिल होना था. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या की बेंच मामले पर सुनवाई के लिए बैठी थी. बेंच ने याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का भरोसा देते हुए पूछा है कि जिरह के लिए कितना समय लेंगे.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘आप लोग बताइए कि कितना समय लेंगे जिरह के लिए. हम अंतरिम विषय पर सुनवाई नहीं करेंगे. मुख्य विषय को सुनेंगे. इसकी जल्द ही तारीख दी जाएगी.’ सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण और कपिल सिब्बल ने ड्राफ्ट लिस्ट पर रोक की मांग की है. उन्होंने कहा कि इससे साढ़े चार करोड़ मतदाताओं को असुविधा होगी.
एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि एक बार ड्राफ्ट पब्लिश होने के बाद जो लोग लिस्ट में नहीं होंगे, उन्हें आपत्तियां दर्ज कराने और लिस्ट में शामिल होने के लिए कदम उठाने होंगे. उन्होंने कहा कि 10 जून को इस पर रोक के लिए इसलिए अपील नहीं की गई क्योंकि कोर्ट ड्राफ्ट से पहले सुनवाई के लिए तैयार हो गया था.
शंकरनारायण ने कहा कि कोर्ट ने आधार, EPIC, राशन कार्ड पर भी विचार की बात कही थी. आयोग ने उसका पालन नहीं किया, इस पर कोर्ट ने वकील से कहा कि शायद आपने आयोग का जवाब ठीक से नहीं पढ़ा. ड्राफ्ट पर रोक लगाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि आप लोग पिछली सुनवाई में कह चुके हैं कि रोक नहीं मांग रहे.
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, ‘हमने यही लिखा है कि हम यह दस्तावेज स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन उसे अंतिम नहीं मान रहे. समर्थन में दूसरे दस्तावेज जरूरी हैं.’ उन्होंने कहा कि यह सिर्फ ड्राफ्ट है, उसमें लोगों को आपत्ति-सुधार का अवसर दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब हम याचिकाकर्ताओं से सहमत होंगे तो पूरी प्रक्रिया रद्द हो जाएगी. अभी किसी रोक की जरूरत नहीं है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार और EPIC पर SIR के दौरान विचार किया जाना चाहिए. अगर किसी केस में संदेह हो तो उस पर जरूरी कार्रवाई हो सकती है. हालांकि, इसे आदेश नहीं कह सकते. यह सुझाव ही है.
(निपुण सहगल के इनपुट के साथ)

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