तमिलनाडु में दशकों से एक ट्रेंड रहा है कि हर पांच साल में सरकार बदल जाती है, लेकिन यह ट्रेंड 2021 में डीएमके की जीत के साथ थोड़ा कमजोर पड़ा, जब एम.के. स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके ने सत्ता में वापसी की. इतिहास को देखे तो 2000 से लेकर 2016 तक हर पांच साल में सरकार बदलती रही. हालांकि, 2021 में बदलाव देखने को मिला है जब डीएमके ने कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियों और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई.
तमिलनाडु में अब चुनाव केवल कल्ट लीडरशिप पर आधारित नहीं रहा है. जयललिता और करुणानिधि के बाद स्टालिन और ईपीएस जैसे नए चेहरे सामने आए हैं, जिनके आधार पर राजनीति आगे बढ़ रही है. हालिया VOTE VIBE सर्वे के मुताबिक, 61% लोग अपने स्थानीय विधायक से नाराज़ हैं. वहीं 41% लोग राज्य सरकार से नाराज हैं. यह आंकड़े बताते हैं कि एंटी इनकंबेंसी अभी भी तमिलनाडु की राजनीति में गहराई से जुड़ी हुई है. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसका सीधा असर आगामी चुनाव में देखने को नहीं मिलेगा. तमिलनाडु में हर चुनाव में 25–30% उम्मीदवार बदले जाते हैं. महिलाओं में प्रो-इनकंबेंसी है, जबकि पुरुषों में एंटी-इनकंबेंसी ज्यादा दिखती है. अलायंस पॉलिटिक्स यहां निर्णायक होती है. कुल मिलाकर, डीएमके को यदि उम्मीदवारों का चयन सोच-समझकर करना होगा, तभी वह एंटी इनकंबेंसी को मैनेज कर सकती है.
DMK बनाम एआईएडीएमके: स्टैंड अलोन वोट शेयर और अलायंस पॉलिटिक्सतमिलनाडु में स्टैंड अलोन वोट शेयर के हिसाब से एआईएडीएमके अब तक डीएमके से आगे रही है. 2000–2021 तक के चुनावों में एआईएडीएमके का स्टैंड अलोन वोट शेयर डीएमके से ज़्यादा था. 2021 में डीएमके का अलायंस मजबूत था — कांग्रेस, लेफ्ट, वीसीके, एमडीएमके जैसी पार्टियां शामिल रहीं. इसका मतलब, डीएमके की सफलता का आधार केवल उसकी पार्टी नहीं, बल्कि मजबूत गठबंधन भी है. हाल के वर्षों में विजय टीवी के अभिनेता विजय ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट की हैं. विजय अपनी पार्टी के जरिए तमिलनाडु में तीसरे विकल्प के रूप में उभर रहे हैं. इस वजह से डीएमके बनाम एआईएडीएमके+बीजेपी बनाम विजय की पार्टी के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. इस तीन तरफा मुकाबले में विपक्ष का वोट बंट सकता है, जिससे डीएमके को फायदा मिल सकता है, जैसा कि सर्वे में भी दिख रहा है.
महिलाओं और पुरुषों में मतभेदसर्वे में दिलचस्प बात यह सामने आई है कि महिलाएं कैश सपोर्ट इनकम स्कीम जैसी वेलफेयर योजनाओं के चलते डीएमके के पक्ष में ज़्यादा हैं, जबकि पुरुष रोजगार और अन्य मुद्दों के चलते एंटी इनकंबेंसी की ओर झुकाव है.इसका मतलब यह हुआ कि डीएमके को अपनी महिला केंद्रित योजनाओं पर और भी जोर देना होगा.
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