सीबीआई की मोहाली स्थित विशेष अदालत ने 1993 में तरनतारन जिले के सात लोगों के फर्जी एनकाउंटर के मामले में सोमवार, 4 अगस्त को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 5 सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है.
कोर्ट ने दोषियों पर 3.5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है, जिसे पीड़ितों की विधवाओं और कानूनी वारिसों को मुआवज़े के तौर पर देने का आदेश दिया गया है. पीटीआई के अनुसार. विशेष न्यायाधीश बलजिंदर सिंह सरा ने इस मामले को ‘नैतिक रूप से दिवालिया और अमानवीय कृत्य’ बताया.
मामले का पृष्ठभूमि और दोषी अफसरों के नाम
यह मामला 1993 के जून-जुलाई में तरनतारन जिले में सात लोगों की हत्या से जुड़ा है दोषियों में तत्कालीन डीएसपी भुपिंदरजीत सिंह (अब सेवानिवृत्त एसएसपी), एएसआई देविंदर सिंह (अब रिटायर्ड डीएसपी), एएसआई गुलबर्ग सिंह, इंस्पेक्टर सुबा सिंह और एएसआई रघुबीर सिंह शामिल हैं.
इन पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक साजिश, हत्या और सबूत मिटाने के आरोप साबित हुए. ट्रायल के दौरान पांच अन्य आरोपी पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी थी.
एनकाउंटर की कहानी और CBI की जांच
सीबीआई की जांच के मुताबिक 27 जून 1993 को सरहाली थाने के SHO गुरदेव सिंह की अगुआई में एक पुलिस टीम ने तीन SPOs शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह सहित दो अन्य को एक सरकारी ठेकेदार के घर से उठाया. 2 जुलाई को पुलिस ने इन पर हथियार लेकर फरार होने का आरोप लगाकर केस दर्ज किया.
फिर 12 जुलाई को एक और फर्जी मुठभेड़ की कहानी रची गई, जिसमें बताया गया कि डकैती के केस में एक संदिग्ध को गांव घड़का ले जाते समय आतंकियों ने हमला कर दिया और चार लोग मारे गए. फॉरेंसिक रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम में खुलासा हुआ कि मृतकों को मौत से पहले प्रताड़ित किया गया था.
कोर्ट की सख्त टिप्पणी और फैसला
कोर्ट ने कहा कि दोषियों का व्यवहार कानून, नैतिकता और मानवता तीनों के खिलाफ था. “इन पुलिस अधिकारियों ने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए निर्दोष लोगों की जिंदगियों को कुचल डाला.” कोर्ट ने डॉक्टर बी. आर. अंबेडकर के एक उद्धरण का हवाला देते हुए कहा, “अधिकारों की रक्षा कानून से नहीं, बल्कि समाज की नैतिक चेतना से होती है, जो अभी भी संस्थागत ढांचे में पूरी तरह नहीं उतर पाई है.”
Tarn Taran Fake Encounter: 1993 के फर्जी एनकाउंटर मामले में 5 रिटायर्ड पुलिसकर्मियों को उम्रकैद, 32 साल बाद हुआ फैसला
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