Sonbhadra News: उत्तर प्रदेश के दक्षिणी सिरे पर बसा सोनभद्र जिला एक ओर अपनी खनिज संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर यहां का जुगैल गांव उस कटु सच्चाई का नाम है, जो देश की ग्रामीण व्यवस्थाओं की असली हालत को बयां करता है. आपने नेता बनते देखे होंगे, विधायक बनते देखे होंगे. लेकिन सोनभद्र के जुगैल गांव में प्रधान बनना किसी मिशन से कम नहीं. वजह? यह गांव केवल गांव नहीं, बल्कि एक विशाल भूगोल है. यहां 75 टोले हैं, और एक टोले से दूसरे टोले तक पहुंचने में कई बार महीनों लग जाते हैं. यह वो जगह है, जहां चुनाव लड़ना चुनौती है, और चुनाव जीतने के बाद जनता तक पहुँचना, उससे भी बड़ी चुनौती.
आज जब देश डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और चंद्रयान पर गर्व कर रहा है, तब भी जुगैल गांव के लोग मोबाइल नेटवर्क के लिए दो-दो किलोमीटर पहाड़ी चढ़ने को मजबूर हैं. एम्बुलेंस बुलानी हो तो नेटवर्क ढूंढना पड़ता है. पुलिस को इमरजेंसी में कॉल करना हो, तो पहले नेटवर्क तलाशिए. इन स्थितियों में एक महिला की मौत हो जाना आश्चर्य नहीं, बल्कि सिस्टम की विफलता का जीवंत प्रमाण है. जुगैल गांव की आबादी आधिकारिक आंकड़ों में भले ही 21,278 वोटरों तक सीमित हो, लेकिन मौजूदा समय में कुल जनसंख्या लगभग 60,000 के आसपास पहुंच चुकी है. ये लोग 75 टोले में फैले हुए हैं, जिनमें से कई टोले अभी भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. पौसिला टोला, गरदा, भटवा टोला, सेमरा जैसे इलाकों में सड़कें अब तक नहीं पहुंची हैं. वहां एम्बुलेंस का जाना लगभग नामुमकिन है. ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं तो सपने जैसी ही लगती हैं.
प्रतिनिधि ने बताई गांव की स्तिथिराजस्व अभिलेख में जुगैल भले ही एक गांव हो, लेकिन यह क्षेत्रफल में कई विधानसभा क्षेत्रों से भी बड़ा है. इतने बड़े क्षेत्र में सिर्फ एक लेखपाल और एक सफाई कर्मचारी की तैनाती से आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रशासन यहां कितना सक्रिय है. ग्राम प्रधान प्रतिनिधि दिनेश यादव बताते हैं कि इतने बड़े गांव के लिए कम से कम 4 लेखपाल और 10 सफाई कर्मचारी की जरूरत है. लेकिन वर्षों से मांग के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है. सफाई कार्य निजी मजदूरों के सहारे कराया जाता है. जुगैल में 46 परिषदीय विद्यालय हैं, लेकिन इनमें से कई आज भी बिना बिजली कनेक्शन के चल रहे हैं. मोबाइल नेटवर्क तो लगभग नहीं के बराबर है. ऐसे में डिजिटल सेवाएं जैसे ऑनलाइन राशन वितरण, बैंकिंग, स्वास्थ्य सूचना, सब सिर्फ नाम की हैं. यही कारण है कि यहां के लोग आज भी ऑफलाइन पद्धति पर निर्भर हैं. राशन कार्ड से लेकर टीकाकरण और बैंकिंग तक, सब कुछ पुराने तरीके से ही होता है.
स्थानीय निवासी अर्जुन सिंह की आपबीती दिल को झकझोर देती है. वे बताते हैं कि नेटवर्क नहीं होने की वजह से एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुंच पाई और उनकी पत्नी की मौत हो गई. ये घटना अकेली नहीं है. गांव के हर टोले से दर्जनों ऐसी कहानियां निकलेंगी, जिनमें सिस्टम की विफलता के कारण लोगों ने अपनों को खोया है. यहां चुनाव लड़ना एक टास्क है. दूर-दराज के इलाकों तक प्रचार करना और मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाना, ये सब एक भारी प्रशासनिक और भौगोलिक चुनौती है. चुनाव के समय प्रत्याशियों को ट्रैक्टर-ट्रालियों का सहारा लेना पड़ता है. जितने के बाद भी, जब वह जनता तक पहुंचते हैं, तो उनकी समस्याएं वैसी की वैसी मिलती हैं.
हक की मांग कर रहे हैं ये लोगजुगैल कोई दूरदराज जंगलों में बसा छोटा सा गांव नहीं, बल्कि एक विशाल मानव बस्ती है जिसे सिर्फ वोट बैंक समझा गया. यहां के लोग अब खैरात नहीं, हक की मांग कर रहे हैं. जिसमे मूलभूत रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार और नेटवर्क की व्यवस्था किया जाय और सबसे बढ़कर, हक इस बात का कि उन्हें भी इंसान समझा जाए. जब तक सरकारें, योजनाएं और प्रशासन सिर्फ फाइलों में चलती रहेंगी, तब तक जुगैल जैसे गांव हमारे ‘विकासशील भारत’ के चेहरे पर एक गहरा सवाल बनकर खड़े रहेंगे. सोनभद्र में कुछ ग्राम पंचायत की भौगोलिक स्थिति के कारण बहुत बड़ा है जुगल ग्राम पंचायत उनमें से एक है ग्राम पंचायत का गठन एक राजस्व गांव को लेकर होता है जो जेल ग्राम पंचायत एक राजस्व गांव है जब तक शासन स्तर से राजस्व गांव का विभाजन नहीं होता है तो इसका गठन मुश्किल है गांव में स्कूल है लेकिन दूरी है वहां के ग्रामीण दूर-दूर बसे हैं वहां नेटवर्क सड़के बनाई जा रही है और विकास कार्य अपनी गति से चल रहा है.
ग्राम पंचायत में टोला का निर्धारण 1000 राजस्व गांव पर किया जाता है जो बेल एक ही राज्य सरकारों है इसलिए उसे तोड़ा नहीं जा सकता है यहां पर जनसंख्या व वोटर बढ़ रहे हैं राजस्व गांव का नियम है कि 1000 से काम नहीं होता है जुगल एक ही राज्य से गांव है यह ब्रिटिश गवर्नमेंट के जमाने से चला रहा है यहां पर नेटवर्क की व्यवस्था जिलाधिकारी के माध्यम से की जा रही है.
UP News: सिस्टम की नाकामियों की जिंदा मिसाल है ये गांव, 60 हजार आबादी, 1 लेखपाल और सफाई कर्मी
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